॥ अथ नवग्रह स्तोत्र ॥ (Navgrah Stotra)

॥ श्री गणेशाय नमः ॥
NavGrah Strotra
जपा (अढ़ौल) के पुष्प की भाँति जिनकी कांति है, जो कश्यप से उत्पन्न हुए हैं,जिनका शत्रु अंधकार है और जो सभी प्रकार के पापों को नष्ट कर देते हैं, मैं उन सुर्यदेव को प्रणाम करता हूँ।


NavGrah Strotra
जिनकी दही, शंख या हिम के समान दीप्ति है, क्षीर-समुद्र से जिनकी उत्पत्ति हुई है तथा जो शिवजी के मुकुट पर अलंकार की भांति विभुषित रहते हैं, उन चंद्रदेव को मैं प्रणाम करता हूँ ।