सर्वांग सुंदर ग्रह शनि (Sarvang Sundar Grah Shani)
ब्रह्मांड में असंख्य सितारे हैं, जिनमें से मात्र चन्द हजार को ही हम देख पाते हैं। आधुनिक तकनीक के बावजूद, अभी भी इन सभी को देख पाना तो दूर, इनकी संख्या तक का निर्धारण नहीं हो पाया है। इनमें कई तारे सुर्य से भी बड़े हैं लेकिन पृथ्वी से काफी दूर होने के कारण यह हमें बहुत छोटे दिखाई देते हैं। इनका प्रकाश भी पृथ्वी तक पहुँचने में हजारों वर्ष लग जाते हैं। इतनी अधिक दूर होने के कारण इनका प्रकाश तो हमको अत्यन्त मंद और इनका रूप लघु तो दिखलाई देता हीं हैं, ये हमारी पृथ्वी और हमारे जीवन पर भी किसी प्रकार का प्रभाव नहीं डाल पाते।
सुर्य भी एक प्रकार का सितारा है, परन्तु वह पृथ्वी से मात्र कुछ करोड़ मील दूर है और उसका प्रकाश हम तक आने में लगभग आठ मिनट का समय लगता है। सुर्य हमारी पृथ्वी के नजदीक है, अत: धूप और प्रकाश के रूप में दिन एवं रात्रि का निर्धारण तो सुर्यदेव करते ही हैं, ऋतुओं का आधार भी सुर्य और पृथ्वी की परस्पर स्थितियां हैं ही। यही नहीं, सुर्य और चंद्रमा के साथ ही सुर्य की निरन्तर परिक्रमा करने वाले अन्य ग्रह भी हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं और इन ग्रहों में सबसे शक्तिशाली ग्रह है शनि।
शनि ग्रह का प्रभाव मनुष्य को अनेक पीड़ाएं देता है। शनि ग्रह को कभी आकार में छोटा, कभी सीधा तो कभी वक्री अर्थात् टेढ़ा चलने वाला ग्रह कहा गया है। नवग्रहों में इसे सातवां स्थान दिया गया है, जो शुक्र से भी नीचा स्थान है । ऐसी मान्यता है की शनि ग्रह जहां कुपित होने पर सभी कुछ हर लेते हैं वहीं प्रसन्न होने पर महाराज विक्रमादित्य की तरह ना केवल रंक को राजा बना देते हैं, बल्कि उनके कटे हाथ-पैरों को भी पुन: उत्पन्न कर देते है। भगवान श्री राम के हाथों रावण की मृत्यु और लंका के विनाश का मुख्य कारण जहां रावण के प्रति शनिदेव का कोप था, वहीं वनवास काल में भी पाण्डवों के अधिक दुख ना उठाने और महाभारत में उनकी विजय का कारण भी पाण्डवों पर शनि देव की कृपा दृष्टी ही थी।
शास्त्रों में शनिदेव और शनि ग्रह के बारे में वर्णित अधिकांश बातें उनके भयप्रद छवि को ही दिखलाती है। परंतु आधुनिक तकनीक से एकत्रिक की गयी, शनि ग्रह की वास्तविक चित्रों एवं सूचनाओं के आधार पर, आज यह प्रमाणित हो चुका है कि शनि ग्रह आकाशमण्डल के अन्य सभी ग्रहों से अधिक सुंदर है। यद्यपि सूर्य के समान यह अधिक प्रकाश और ताप देने वाला ग्रह नहीं है, परंतु इसकी गहरी नीली आभा चंद्रमा से भे अधिक शीतलता प्रदायक है। इसका रंग काला नहीं बल्कि भगवान शंकर के शरीर के समान नीला है। अत : यह क्रूरता के प्रतीक दैत्य के समान नहीं बल्कि हमारे ईश्वर का साक्षात प्रतिनिधि है। संसार के सभी धर्मों में ईश्वर के अवतारों और महान आत्माओं के मुख मण्डल के चारों ओर एक प्रकाश पुंज अंकित किया जाता है। ग्रहों में शनि ही एक ऐसा ग्रह है जिसके चारों ओर प्राकृतिक रूप से इस प्रकार का एक अत्यंत विशाल वलय है। नेक लघु नक्षत्रों से बना यह वलय ही शनि ग्रहको महानतम ग्रह और इसके अधिपत्य देवाधिदेव शनिदेवजी को ईश्वर के समक्ष प्रमाणित करने के लिये पर्याप्त है।
शनि ग्रह पृथ्वी से नवासी करोड़ मील अर्थात् डेढ़ अरब किलोमीटर दूर है। तभी हम पृथ्वी वासियों को यह अत्यंत छोटा नजर आता है। शनि ग्रह के कम प्रकाशवान दिखने और लगभग तीस वर्ष में सुर्य का एक चक्कर लगाने का कारण भी इसकी दूरी ही है।