॥ श्रीशनैश्चरसहस्रनामस्तोत्रम् ॥
ऐसे तो शनि देव को प्रसन्न करने के कई उपाय हैं । लेकिन आप शनि सहस्त्रनाम का जप कर के भी शनिदेव की कृपा दृष्टि पा सकते हैं। महर्षि कश्यप ने शनि सहस्त्रनाम को दो सौ श्लोकों में संकलित किया है। इस स्तोत्र में शनि देव के एक हजार नाम का उल्लेख है । शनि देव का यह सहस्त्रनाम स्तोत्र आपके सभी साधनों को सफल बनाता है। मात्र इसके नियमित पाठ से भी शनि देव अपने भक्तों पर कृपा दृष्टि बनाये रखते हैं ।
सहस्त्रनाम पाठ की विधि :-
इस स्तोत्र का पाठ आप किसी भी शनिवार से शुरु कर सकते हैं। शनिवार को ब्रह्म मुहुर्त में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहन लें। यदि शनि देव की मूर्ति या तस्वीर घर में हो तो उसके सामने अथवा मंदिर में शनि देव की मूर्ति के सामने पूर्व दिशा में मुख करके आसन बिछाकर बैठ जायें। शनि देव की विधिपूर्वक पुजन करें, तेल का दीपक जलायें तथा धूप दिखायें। अब दाहिने हाथ में जल लेकर विनियोग “ऊँ अस्य श्रीशनैश्चरसहस्रनामस्तोत्र..” से आरम्भ कर “ जपे विनियोग ” तक पढ़कर जल भूमि पर छोड़ दें । इसके बाद न्यास तथा ध्यान कर के पाठ आरम्भ करें ।
विनियोग
अपने दाएं हाथ में जल लेकर पूजा के समय ‘ऊँ अस्य श्रीशनैश्चरसहस्रनामस्तोत्र से जपे विनियोग:’ तक पढक़र जल पृथ्वी पर छोड़ दें।
ऊँ अस्य श्रीशनैश्चरसहस्रनामस्तोत्र महामन्त्रस्य । काश्यप ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः ॥
शनैश्चरो देवता । शम् बीजम् ॥ नम् शक्तिः ॥ मम् कीलकम् ॥
शनैश्चरप्रसादासिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ॥
अनुष्टप छन्द में रचित इस शनैश्चर सहस्रनाम स्तोत्र के ऋषि महर्षि कश्यप हैं। शनिदेव इसके देवता हैं। शम् इसका बीज है, नम् इसकी शक्ति है तथा मम् कीलक है। शनिदेव को प्रसन्न एवं संतुष्ट करने के लिये जप में इसका विनियोग है ।
अथ न्यास: - करादिन्यास:
शनैश्चराय अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।( कहकर दोनों अंगुष्ठों के बीच में तर्जनी को लगावे)
मन्दगतये तर्जनीभ्यां नमः ।(दोनों तर्जनी से अंगुष्ठों को लगावे)
अधोक्षजाय मध्यमाभ्यां नमः ।(दोनों मध्यमा अंगुलियों को अंगुष्ठों से लगावे)
सौरये अनामिकाभ्यां नमः ।( पढ़कर दोनों अनामिका अंगुलियों को अंगुष्ठ से स्पर्श करे)
शुष्कोदराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।( पढ़कर दोनों कनिष्ठिका अंगुलियों को अंगुष्ठ से स्पर्श करे)
छायात्मजाय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।(पढ़कर दोनों हथेलियों और हाथों के पृष्ठभागों को परस्पर स्पर्श करें)
हृदयादिन्यास:-
शनैश्चराय हृदयाय नमः ।( कहकर पाँचों अंगुलियों से हृदय का स्पर्श करे)
मन्दगतये शिरसे स्वाहा ।( कहकर शिर का स्पर्श करे)
अधोक्षजाय शिखायै वषट् ।( कहकर शिखा का स्पर्श करे)
सौरये कवचाय हुम् ।( कहकर दाहिने हाथ की पाँचों अंगुलियों से बायें कंधे का और बायें हाथ की पाँचों अंगुलियों से दाहिने कंधे का स्पर्श करे)
शुष्कोदराय नेत्रत्रयाय वौषट् ।( कहकर दोनों नेत्र तथा ललाट का स्पर्श करे)
छायात्मजाय अस्त्राय फट् । ( कहकर दाहिने हाथ को आगे से लेकर बायें कंधे से पीठपर घुमाकर ताली बजाये)
भूर्भुवः सुवरोमिति दिग्बन्धः । ( इस मन्त्र को पांच बार पढक़र दिग्बन्धन करना चाहिए।
और सामने, दायें, पीछे, बायें, ऊपर, नीचे जल छिड़कें)
अथ ध्यानम्
दोनों हाथ जोड़कर श्री शनीदेव जी का ध्यान करें तथा दिये गये मंत्र का उच्चारण करें ।
चापासनो गृध्रधरस्तु नीलः प्रत्यङ्मुखः काश्यप गोत्रजातः ।
सशूलचापेषु गदाधरोऽव्यात् सौराष्ट्रदेशप्रभवश्च शौरिः ॥
नीलाम्बरो नीलवपुः किरीटी गृध्रासनस्थो विकृताननश्च ।
केयूरहारादिविभूषिताङ्गः सदाऽस्तु मे मन्दगतिः प्रसन्नः ॥
अथ सहस्त्रनामस्त्रोतम्
अब सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ आरम्भ करें :-