॥ अथ नवग्रह स्तोत्र ॥ (Navgrah Stotra)

जिसकी उत्पत्ति पृथ्वी के गर्भ से हुई है, जिनकी आभा विद्युत्पुञ्ज (बिजली) के समान है, जो हाथों में शक्ति धारण किये रहते हैं , मैं उन मंगलदेव को प्रणाम करता हूँ ।

जिनका प्रियंगु की कली की भाँति श्याम वर्ण है, जिनके रूप की कोई उपमा नहीं है, उन सौम्य तथा सौम्य गुणों से युक्त बुधदेव को मैं प्रणाम करता हूँ ।