शनिवार व्रत विधि

Shani Pujan Samagri

राहु और केतु के कष्ट निवारण के लिये शनिव्रत का विधान

राहु तथा केतु ग्रहजनित कष्टों से निवारण हेतु भी शनिवार व्रत का विधान है। इसके लिये शनि की लोहे की, राहु व केतु की शीशे की मूर्ति बनाई जाती है। कृष्ण वर्ण वस्त्र, दो भुजदण्ड और अक्षमाला धारी, काले रंग के आठ घोड़े वाले शीशे के रथ में बैठे शनि का ध्यान करें। कराल बदन, खडंग, चर्म और शूल से युक्त नीले सिंहासन पर विराजमान वरप्रद राहु का ध्यान करें। धूम्रवर्ण, भुजदण्डों, गदादि आयुध, गृध्रासन पर विराजमान, विकटासन और वरप्रद केतु का ध्यान करें। इन्हीं स्वरूपों में मूर्तियों का निर्माण करायें अथवा गोलाकार मूर्ति बनायें।काले रंग के चावल से चौबीस दलों का कमल बनायें । कमल के मध्य में शनि, दक्षिण भाग में राहु और वाम भाग में केतु की स्थापना करें। रक्त चंदन में केशर मिश्रित कर गंध ,चावलों में काजल मिलाकर काले चाव ,काकमाची, कागलहर के काले पुष्प, कस्तूरी इत्यादी को मिश्रित कर कृष्ण धूप और तिल के सन्योग से “कृष्ण नैवैद्य “ निर्मित कर अर्पण करें। अब दोनों हाथ जोड़कर मंत्र से प्रार्थना करें :-

“शनैश्चर: नमस्तुभ्यं नम्स्तेत्वथ राहवे। केतवेSथ नमस्तुभ्यं सर्वशांति प्रदो भव:। ”

सात शनिवार तक व्रत करें। सातवें शनिवार को शनि हेतु शनि-मंत्र से शनि की समिधा में, राहु हेतु राहु मंत्र से पूर्वा की समिधा में, केतु हेतु केतु मंत्र से कुशा कीए समीधा में, कृष्ण जौ और काले तिल मिश्रित हवन सामग्री से प्रत्येक के लिये १०८ आहुतियां दे और ब्राह्मणों को भोजन करायें। इस तरह से विधिपूर्वक शनिव्रत करने से शनि, राहु, केतु जनित कष्ट, सभी प्रकार के अरिष्ट कष्ट तथा आदि-व्याधियों का नाश हो जाता है।