सिद्ध शनि चालीसा
• श्री शनि चालीसा • नवग्रह चालिसा • सिद्ध शनि चालीसा • शनिदेव जी का चालीसा
सिद्ध शनि चालीसा
॥ छंद ॥
सुख मूल गुरु चरण-रज ,सुखद अलौकिक धूल।
मन के पाप विकार को,नासै तुरत समूल ॥
दु:ख दाता शनिदेव को,कहूं चालिसा सिद्ध।
शनि कृपा से दूर हों,ताप कष्ट अरु शूल ॥
॥ दोहे ॥
दु:ख घने मैं मंदमति,शनि सुख-दु:ख के हेतु।
सर्व सिद्धि साफल्य दो,हरो कष्ट भव-सेतु॥
जग दारुण दु:ख बेलड़ी,मैं एक हाय! असहाय ।
विपद-सेना विपुल बड़ी,तुम बिन कौन सहाय ॥
॥ चौपाइयां ॥
शनिदेव कृपालु रवि-नन्दन। सुमिरन तुम्हारा सुख-चन्दन ॥
नाश करो मेरे विघ्नों का । कृपा सहारा दु:खी जनों का ॥
जप नाम सुमिरन नहीं कीन्हा ।तभी हुआ बल बुद्धि हीना॥
विपद क्लेश कष्ट के लेखे। रवि सुत सब तव रिस के देखे॥
क्रूर तनिक ब्रभु की दृष्टी । तुरत करै दारुण जप दु:ख वृष्टि ॥
कृष्ण नाम जप ‘राम कृष्णा’ । कोणस्थ मन्द हरैं सब तृष्णा॥
पिंगल, सौरि, शनैश्चर, मन्द । रौद्र, यम कृपा जगतानन्द ॥
कष्ट क्लेश, विकार घनेरे । विघ्न, पाप हरो, शनि मेरे॥
विपुल समुद्र दु:ख-शत्रु-सेना । कृष्ण सारथि नैया खेना ॥
सुरासुर नर किन्नर विद्याधर । पशु, कीट अरु नभचर जलचर ॥
राजा रंक व सेठ , भिखारी । देव्याकुलता गति बिगाड़ी ॥
दु:ख, दुर्भिक्ष,दुस्सह संतापा । अपयश कहीं , घोर उत्पाता ॥
कहीं पाप,दुष्टता व्यापी । तुम्हरे बल दु:ख पावै पापी ॥
सुख सम्पदा साधन नाना । तव कृपा बिन राख समाना ॥
मन्द ग्रह दुर्घटना कारक । साढ़े साती से सुख- सन्हारक ॥
कृपा कीजिए दु:ख के दाता । जोरि युगल कर नावऊ माथा ॥
हरीश्चन्द्र से ज्ञानी राजा । छीन लिए तुम राज-समाजा ॥
डोम चाकरी, टहल कराई । दारुण विपदा पर विपद चढ़ाई ॥
गुरु सम सबकी करो ताड़ना । बहुत दीन हूं,नाथ उबारना॥
तिहूँ लोक के तुम दु:ख दाता कृपा कोर से जन सुख पाता॥
जौं, तिल, लोहा,तेल, अन्न, धन । तम उरद, गुड़ प्रिय मन भावन ॥
यथा सामर्थ्य जो दान करे । शनि सुख के सब भण्डार भरे ॥
जे जन करैं दु:खी की सेवा । शनि-दया की चखैन नित मेवा ॥
बुरे स्वप्न से शनि बचावें । अपशकुन को दूर भगावें ॥
दुर्गति मिटे दया से उनकी । हरैं दुष्ट-क्रूरता मन की ॥
दुष्ट ग्रहों की पीड़ा भागे । रोग निवारक शक्ति जागे ॥
सुखदा, वरदा, अभयदा मन्द । पीर, पाप ध्वंसक रविनन्द ॥
दु:ख, दावग्नि विदारक मंद । धारण किए धनुष, खंग, फंद ॥
विकटट्टहास से कम्पित जग । गीध सवार शनि, सदैव सजग ॥
जय-जय-जय करो शनि देव की । विपद विनाशक देव देव की ॥
प्रज्जवलित होइए, रक्ष रक्ष । अपमृत्यु नाश में पूर्ण दक्ष ॥
काटो रोग भय कृपालु शनि । दुख शमन करो,अब प्राण बनी ॥
मृत्यु भय को भगा दीजिए । मेरे पुण्यों को जगा दीजिए ॥
रोग शोक को जड़ से काटो । शत्रु को सबल शक्ति से डांटो ॥
काम, क्रोध, लोभ,भयंकरारि । करो उच्चाटन भक्त-पुरारि ॥
भय के सारे भूत भगादो । सुकर्म पुण्य की शक्ति जगा दो ॥
जीवन दो, सुख दो , शक्ति दो । शुभ कर्म कृपा कर भक्ति दो ॥
बाधा दूर भगा दो सारी । खिले मनोकामना फुलवारी ॥
सुद्ध मन दु:खी जन पढ़े चालीसा । शनि सहाय हों सहित जगदीसा ॥
बढ़ैं दाम जस पानी बरखा । परखों शनि शनि तुम परखा ॥
॥ दोहे ॥
चालिस दिन के पाथ से,मन्द देव अनूकूल ।
‘रामकृष्ण’ कष्ट घटैं सूक्ष्म अरु स्थूल॥
दशरथ शूरता स्मरण,मंगलकारी भाव ।
शनि मंत्र उच्चारित, दु:ख विकार निर्मूल ॥