हनुमान जी का कर्जा
Hanuman Ji Ka Karj

रामजी लंका पर विजय प्राप्त कर के आए तो, भगवान ने विभीषण जी, जामवंत जी, अंगद जी, सुग्रीव जी सब को अयोध्या से विदा किया। सब ने सोचा, हनुमान जी को प्रभु बाद में विदा करेंगे, लेकिन रामजी ने हनुमान जी को विदा ही नहीं किया ।
अब प्रजा बात बनाने लगी कि क्या बात है, सब गए, परन्तु हनुमान जी नहीं गए अयोध्या से ! अब दरबार में काना फूसी शुरू हुई कि हनुमान जी से कौन कहे जाने के लिए । तो सब से पहले माता सीता की बारी आई कि आप ही बोलो कि हनुमान जी चले जाएं।
माता सीता बोलीं मैं तो लंका में विकल पड़ी थी, मेरा तो एक एक दिन एक एक कल्प के समान बीत रहा था, वो तो हनुमान जी थे,जो प्रभु मुद्रिका ले के गए, और धीरज बंधवाया कि ..
. कछुक दिवस जननी धरु धीरा।
कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।।
निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं।
तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं॥
मैं तो अपने बेटे से बिल्कुल भी नहीं बोलूंगी अयोध्या छोड़ कर जाने के लिए, आप किसी और से बुलावा लो।
अब बारी आयी लक्ष्मण जी की तो लक्ष्मण जी ने कहा, मैं तो लंका की रणभूमि में वैसे ही मरणासन्न अवस्था में पड़ा था, पूरा रामदल विलाप कर रहा था।
प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।
आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महँ बीर रस।।
ये तो जो खड़ा है, वो हनुमान जी का लक्ष्मण है। मैं कैसे बोलूं, किस मुंह से बोलूं कि हनुमान जी अयोध्या से चले जाएं !
अब बारी आयी भरत जी की, अरे ! भरत जी तो इतना रोए, कि रामजी को अयोध्या से निकलवाने का कलंक तो वैसे ही लगा है मुझ पर, हनुमान जी का सब मिल के और लगवा दो !
और दूसरी बात ये कि ...
बीतें अवधि रहहिं जौं प्राना।
अधम कवन जग मोहि समाना॥
मैंने तो नंदीग्राम में ही अपनी चिता लगा ली थी, वो तो हनुमान जी थे जिन्होंने आ कर ये खबर दी कि ...
रिपु रन जीति सुजस सुर गावत।
सीता सहित अनुज प्रभु आवत॥
मैं तो बिल्कुल न बोलूं हनुमान जी से अयोध्या छोड़ कर चले जाओ, आप किसी और से बुलवा लो।
अब बचा कौन ..? सिर्फ शत्रुघ्न जी। जैसे ही सब ने उन की तरफ देखा, तो शत्रुघ्न जी बोल पड़े ...
मैंने तो पूरी रामायण में कहीं नहीं बोला, तो आज ही क्यों बुलवा रहे हो, और वो भी हनुमान जी को अयोध्या से निकलने के लिए, जिन्होंने माता सीता, लक्ष्मण भैया, भरत भैया सब के प्राणों को संकट से उबारा हो ! किसी अच्छे काम के लिए कहते बोल भी देता। मैं तो बिल्कुल भी न बोलूं।
अब बचे तो मेरे राघवेन्द्र सरकार ...माता सीता ने कहा प्रभु ! आप तो तीनों लोकों के स्वामी हैं, और देखती हूं आप हनुमान जी से सकुचाते हैं और आप खुद भी कहते हो कि ...
प्रति उपकार करौं का तोरा।
सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥
आखिर आप के लिए क्या अदेय है प्रभु !
राघवजी ने कहा देवी कर्जदार जो हूं, हनुमान जी का, इसीलिए तो ...
सनमुख होइ न सकत मन मोरा
देवी ! हनुमान जी का कर्जा उतारना आसान नहीं है, इतनी सामर्थ्य राम में नहीं है, जो "राम नाम" में है, क्योंकि कर्जा उतारना भी तो बराबरी का ही पड़ेगा न ... !
यदि सुनना चाहती हो तो सुनो हनुमान जी का कर्जा कैसे उतारा जा सकता है।
पहले हनुमान विवाह करें,
लंकेश हरें इन की जब नारी।
मुदरी लै रघुनाथ चलै,
निज पौरुष लांघि अगम्य जे वारी।
आयि कहें, सुधि सोच हरें,
तन से, मन से होई जाएं उपकारी।
तब रघुनाथ चुकायि सकें,
ऐसी हनुमान की दिव्य उधारी।।
देवी ! इतना आसान नहीं है, हनुमान जी का कर्जा चुकाना। मैंने ऐसे ही नहीं कहा था कि ...
"सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं"
मैंने बहुत सोच विचार कर कहा था, लेकिन यदि आप कहती हो तो कल राज्य सभा में बोलूंगा कि हनुमान जी भी कुछ मांग लें। दूसरे दिन राज्य सभा में सब एकत्र हुए, सब बड़े उत्सुक थे कि हनुमान जी क्या मांगेंगे, और रामजी क्या देंगे।
राघवजी ने कहा ! हनुमान, सब लोगों ने मेरी बहुत सहायता की और मैंने, सब को कोई न कोई पद दे दिया। विभीषण और सुग्रीव को क्रमशः लंका और किष्किन्धा का राजपद, अंगद को युवराज पद। तो तुम भी अपनी इच्छा बताओ ...
हनुमान जी बोले ! प्रभु आप ने जितने नाम गिनाए, उन सब को एक एक पद मिला है, और आप कहते हो ...
तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना
तो फिर यदि मैं दो पद मांगू तो ... ?
सब लोग सोचने लगे बात तो हनुमान जी भी ठीक ही कह रहे हैं।
राम जी ने कहा ! ठीक है, मांग लो ।
सब लोग बहुत खुश हुए कि आज हनुमान जी का कर्जा चुकता हुआ।
हनुमान जी ने कहा ! प्रभु जो पद आप ने सब को दिए हैं, उन के पद में राजमद हो सकता है, तो मुझे उस तरह के पद नहीं चाहिए, जिस में राजमद की शंका हो,
तो फिर ... ! आप को कौन सा पद चाहिए ?
हनुमान जी ने रामजी के दोनों चरण पकड़ लिए, प्रभु ... ! हनुमान को तो बस यही दो पद चाहिएं।
हनुमत सम नहीं कोउ बड़भागी।
नहीं कोउ रामचरण अनुरागी।।
जानकी जी की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए राघवजी बोले, लो उतर गया हनुमान जी का कर्जा !
और अभी तक जिस को बोलना था, सब बोल चुके हैं, अब जो मैं बोलता हूं उसे सब सुनो, रामजी भरत भैया की तरफ देखते हुए बोले ...
हे ! भरत भैया' कपि से उऋण हम नाही
हम चारों भाई चाहे जितनी बार जन्म लेे लें, हनुमान जी से उऋण नही हो सकते।

Prabhu Prem me Sauda nahin , Kaam Ki baatein