भाई बहन की कहानी
Bhai Bahan Ki Kahani
किसी गाँव में एक भाई अपनी बहन और पत्नी के साथ रहता था। दोनों भाई बहन में बहुत प्रेम था। बहन का नियम था कि वह अपने भाई का मुँह देखकर ही भोजन करती थी।
कुछ दिनों के बाद बहन की शादी कुछ दिन के बाद बहन की शादी पास के गाँव में हो गई।लेकिन बहन ने अपना नियम नहीं तोड़ा, प्रतिदिन अपने भाई का मुँह देखने आती।
रोज सवेरे उठती , घर का काम करती उसके बाद भाई का मुँह देखने अपने पीहर जाती। रास्ते में खेजड़ी का पेड़ था, उस पेड़ के नीचे विनायक जी की मूर्ति थी पास में ही तुलसी माता का हरा भरा पेड़ था। पथवारी माता को दूध दही से सींचती।
भाई का मुँह देखने जाती और कहती जाती हे भगवान , हे विनायक जी, मेरे को अमर सुहाग देना और अमर पीहर देना | इस प्रकार से कहती हुई आगे अपने पीहर के रास्ते पर चलती जाती । रास्ते में काँटों की झाड़िया थी , बहन के पैर में कांटे चुभ जाते | पीहर पहुँची अपने भाई का मुँह देखा और पास में बैठ गई ।
भाई ने बहन के पैर से खून निकलते देखा तो पूछा “ बाईसा,आपके पैर में जख्म कैसे लगा, क्या हुआ ? तब बहन बोली –“रास्ते में झाड़िया थीं उसी के काँटे चुभ गये। ”
कुछ देर के बाद बहन अपने घर वापस चली गई ।बहन के जाने के नाद भाई ने सोचा कि बहन मुझसे मिलने आती है, रास्ते में झाड़िया है, उसके काँटे मेरी बहन के पैर में चूभ जाते हैं।
अपने घर से बहन के घर तक का रास्ता साफ कर दिया। रास्ते में से विनायक भगवान, तुलसी माता सभी को साफ कर किनारे कर दिया।
इससे भगवान क्रोधित हो गये और भाई को हमेशा के लिये सोता छोड़ दिया। प्रात:काल उठने पर पत्नी पति की अवस्था को देखकर रोने लगी | सभी गाँववासी एकत्रित हो गये।
लोकाचार करने के लिये ले जाने लगे; तो पत्नी ने कहा कि आप लोग कुछ देर रुक जाइये। मेरी बाईसा का प्रतिदिन का नियम है अपने भाई का मुँह देखने का; वह आती हीं होगी। तब गाँववाले कहने लगे आज तो मुँह देख लेगी लेकिन कल से क्या करेगी।
तब एक वृद्ध ने कहा- “ठीक है । थोड़ी देर देख लेते हैं। ”
उधर बहन हर दिन की तरह सवेरे उठी ,घर का काम किया । उसके बाद अपने भाई से मिलने को चल पड़ी । रास्ते में आई तो देखा कि पूरा रास्ता साफ किया हुआ है।
पेड़ के पास खेजड़ी की डाल दुबारा लगाई ,सात पत्थर लगाकर पथवारी माता बैठाई, विनायक जी की मूर्ति खोज कर दुबारा से स्थापित किया। तुलसी जी का पेड़ लगाया।
भगवान सुर्यदेव को साक्षी मानकर सब के पाँव पकड़ कर बोली- “हे भगवान अमर सुहाग देना, अमर पीहर वास देना ।”
इतना कहकर अपने पीहर की ओर चल दी। उसके जाने के बाद विनायक जी भगवान , खेजड़ी , माता तुलसी , पथवारी माता , सूर्य भगवान ने सोचा यदि इसकी नहीं सुनी तो हमें को कौन मानेगा ?
यह सोचकर भगवान ने बहन को आवाज लगाई ,” बेटी इधर आ , खेजड़ी के सात पत्तियाँ तोड़ कर ले जा और इसे कच्चे दूध में घोलकर अपने भाई को इसके छीटे देना वो सही सलामत उठकर बैठ जायेगा | “
बहन ने मुडकर देखा उसे कोई भी दिखाई नहीं दिया पर उसने मन में सोचा जैसा सुना है वैसा कर लेती हूँ |
खेजड़ी की सात पत्तियाँ तोड़कर अपने पल्लू में बाम्ध लिया और चल पड़ी । अपने भाई के घर पहुंची तो देखा भाभी रो रहीं हैं , गाँववाले बैठे हैं , भाई की लाश रखी हैं ।
वो अपने घर के अंदर गई, कच्चे दूध में खेजड़ी की पत्तियों को घोल कर लेकर आई और उसके छींटे भाई के मुँह पर दिये। छींटे लगते ही भाई उठकर बैठ गया,जैसे गहरी नींद से जगा हो।
बहन को देखकर बोला , “ बड़ी गहरी नींद आई थी|” बहन ने मन-ही-मन सभी भगवान को प्रणाम किया और बोली ऐसी नींद दुश्मन को भी कभी न आये |
फिर अपनी भाई से बोली- “भाई! तुमने रास्ता साफ क्यों किया। भगवान के स्थान को क्यों उठाकर हटाया। मैं आते समय सभी को दुबारा स्थापित कर के आई हूँ। भगवान की कृपा से ही मुझे अमर सुहाग और अमर पीहर वास मिला है।”
फिर हाथ जोड़करकहा- “हे भगवान जैसे मुझे अमर सुहाग और अमर पीहर वास दिया वैसे सब को देना।जैसे मेरी लाज रखी वैसे सब की रखना। ”
|| बोलो विनायक जी की जय , पथवारी माता की जय , तुलसी माता की जय , खेजड़ी की जय , सूर्य भगवान की जय ||